Jcert Class 8 भाषा मंजरी Chapter 16 अपराजिता Solutions
अध्याय - 16 : अपराजिता
उ. डॉ० चंद्रा से पहली बार मिलकर लेखिका को अपने जीवन की रिक्तता बहुत छोटी लगने लगी। लेखिका को महसूस हुआ कि डॉ० चंद्रा को विधाता ने कठोरतम दंड दिया है किंतु उसे वह नतमस्तक आनंदी मुद्रा में झेल रही है, विधाता को कोसकर नहीं।
2. लेखिका को डॉ. चंद्रा देवांगना सी क्यों लगी?
उ. लेखिका को डॉ० चंद्रा देवांगना-सी इसलिए लगी कि उसने नियति के प्रत्येक कठोर आघात को अति मानवीय ढ़ंग से धैर्य एवं साहस से झेला।
3. वीर जननी का पुरस्कार किसे मिला? उसे यह पुरस्कार क्यों दिया गया?
उ. 'वीर जननी' का पुरस्कार डॉ० चंद्रा की माँ शारदा सुब्रमण्यम को मिला। उन्हें वह पुरस्कार इसलिए मिला कि वह एक ऐसी दृढनिश्चयी, संघर्षशील, साहसी तथा ममतामयी माँ थीं जो अपनी दिव्यांग पुत्री के संघर्ष में हर कदम पर साथ रहती थी।
4. 'अपराजिता' किस प्रकार अपने नाम को सार्थक करती है।
उ. 'अपराजिता' का अर्थ होता है जो कभी पराजित न हो। डॉ० चंद्रा को लेखिका ने 'अपराजिता' संबोधित किया है। वास्तव में डॉ० चंद्रा में असीम धैर्य, दृढ इच्छाशक्ति और अद्भुत लगन है। वह अपनी विकलांगता पर विजय प्राप्त कर सफलता का शिखर छू लेती है। विषम और विकट परिस्थितियों में भी अपराजित बनी रहनेवाली अपराजिता अपने जीवन की कठिन परिस्थितियों और चुनौतियों का साहसपूर्ण तरीके से सामना करके अपने नाम को भी सार्थक करती है।
5. चिकित्सा ने जो वह विज्ञान ने पाया । उपरोक्त पंक्ति को पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उ. डॉ० चंद्रा की इच्छा डॉक्टर बनने की थी। इसलिए वह मेडिकल प्रवेश परीक्षा में शामिल होती है।और परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करती है किन्तु उसे यह कहकर प्रवेश नहीं लेने दिया जाता है कि उसके शरीर का निचला धड़ निर्जीव है और वह एक सफल चिकित्सक नहीं बन पाएगी। लेकिन वह विज्ञान में सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचती है। तब उसके प्रोफेसर कहते हैं कि 'मुझे यह कहने में रंचमात्र भी हिचकिचाहट नहीं होती कि डॉ० चंद्रा ने विज्ञान की प्रगति में महान योगदान दिया है। चिकित्सा ने जो खोया अर्थात् इतनी प्रतिभासम्पन्न महिला की प्रतिभा का लाभ नहीं ले पाया, वह विज्ञान ने पाया अर्थात् उसकी प्रतिभा का लाभ उठाया, जिससे विज्ञान समृद्ध हुआ।
उ.लेखिका ने लखनऊ के मेधावी युवक को डॉ० चंद्रा से प्रेरणा लेने की बात कही है। उस मेधावी युवक का ट्रेन से दायाँ हाथ कट गया था और वह इतना दुखी हुआ कि अपना मानसिक संतुलन भी खो बैठा पहले दुख भुलाने के लिए नशे की गोलियाँ खाने लगा फिर मानसिक संतुलन खो कर मानसिक रोगियों के अस्पताल में है। उसने तो मात्र एक हाथ खोकर ही हथियार डाल दिए और इधर डॉ० चंद्रा, जिसका निचला धड़ निष्प्राण मांसपिंड मात्र, सदा उत्फुल्ल है, चेहरे पर विषाद की एक भी रेखा नहीं, बुद्धि दीप्त आँखों में अदम्य उत्साह, प्रतिपल प्रतिक्षण भरपूर, उत्कट जिजीविषा और साथ ही कैसी-कैसी महत्वाकांक्षाएँ पाल रखी है। ऐसी महिला से सिर्फ प्रेरणा ही ली जा सकती है ।
7. लेखिका ने डॉ. चंद्रा की कार्यकुशलता को सुदीर्घ कठिन अभ्यास की यातनाप्रद भूमिका कहा है लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है ?
उ. लेखिका ने डॉ० चंद्रा की कार्यकुशलता को सुदीर्घ कठिन अभ्यास की यातनाप्रद भूमिका इसलिए कहा है कि डॉ० चंद्रा आज जितनी कार्य कुशल दिखाई देती है उसके पीछे उनकी कठिन साधना है। यह कठिन साधना अत्यन्त कष्टकर भी रही उन्होंने अत्यंत कष्टपूर्वक एक-एक कठिन परिस्थिति को झेलकर अपने पक्ष में किया होगा तब जाकर आज वह इतनी कार्यकुशल हैं कि अपना सब काम स्वयं कर सकती हैं।
उ. जब इस बात का बोध होता है कि सामने वाला व्यक्ति किसी ऐसे दुःख को झेल रहा है जिसकी हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते तो हमें उसका दुःख खुद के दुःख से बड़ा लगता है। उदाहरण स्वरूप लेखिका के जीवन में खालीपन है लेकिन जब वह डॉ० चंद्रा से मिलती है तो उसके दिव्यांग शरीर को देखकर उसे अपना दुःख छोटा लगने लगता है।
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