Jcert Class 7 भाषा मंजरी Chapter 17 वरदान का फेर Solutions
पाठ 17 : वरदान का फेर
1. महात्मा बुद्धदेव और महात्मा बुद्छूदेव में क्या अंतर बताया गया है?
उ. महात्मा बुद्धदेव और महात्मा बुद्छूदेव में निम्नलिखित अंतर बताया गया हैः
- महात्मा बुद्धदेव का जन्म महात्मा बुद्छूदेव के जन्म के बाद हुआ था, जबकि महात्मा बुद्छूदेव का जन्म पहले हुआ।
- महात्मा बुद्धदेव का जन्म कपिलवस्तु में हुआ था, जबकि महात्मा बुद्छूदेव का जन्म कपालवस्तु में हुआ।
- महात्मा बुद्धदेव का पहला नाम सिद्धार्थ था, जबकि महात्मा बुद्छूदेव का पहला नाम कुष्मांडसेन था।
2. माता-पिता की मृत्यु के बाद कुष्मांडसेन के दिन किस प्रकार बीतने लगे?
उ. माता-पिता की मृत्यु के बाद कुष्मांडसेन के दिन पागलों की तरह बीतने लगे। उन्होंने अपने आपको बिल्कुल भगवान के भरोसे छोड़ दिया और दर-ब-दर घूमने लगे। किसी ने कुछ दे दिया तो खा लेते और नहीं तो चुपके से सो जाते।
3. बुद्छूदेव को कब अनुभव हुआ कि वे महात्मा बन गए हैं?
उ. जब बनिये ने बुद्छूदेव को महात्मा जी कहा और बताया कि दुनिया में हर कोई उनको महात्मा जी कहता है, तब उन्हें अनुभव हुआ कि वे महात्मा बन गए हैं।
4. बुद्छूदेव जी ने महात्मा बनने के बाद अपने भोजन में क्या परिवर्तन किया?
उ. बुद्छूदेव जी ने महात्मा बनने के बाद अपने भोजन में साबूदाना खाना आरंभ किया। दोनों जून एक-एक कटोरा साबूदाना उबाल कर पीने लगे।
5. बुद्छूदेव को कैसे पता चला कि वे तपस्वी हो गए? इसके बाद उनके मन में क्या ख्याल आया?
उ. जब लोग कहने लगे कि "वाह! देखो, कितने बड़े तपस्वी हैं। केवल साबूदाना खाकर ही जीवन धारण करते हैं। धन्य हैं।" तब बुद्छूदेव को ख्याल आया कि अब तपस्वी भी हो ही गया है, तो थोड़ी तपस्या भी कर लेनी चाहिए।
6. सात वर्ष की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी आए तब बुद्छूदेव ने उनसे क्या-क्या वरदान माँगा?
उ. सात वर्ष की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी आए तब बुद्छूदेव ने उनसे तीन वरदान माँगेः
1) हजाम मुफ्त में उनकी हजामत बना दिया करे।
2) जब वह झोली सिलने के लिए किसी दर्जी को कपड़ा दे, तो वह उसमें से एक अंगुल भी न चुराए।
3) वह जब चाहे तब ब्रह्मा जी से और तीन वरदान माँग ले।
7. परेशान ब्रह्मा जी ने बुद्छूदेव से मुक्ति के लिए क्या किया?
उ. ब्रह्मा जी ने बुद्छूदेव को वरदान दे-देकर हैरान परेशान हो गए। तब उन्होंने बुद्छूदेव को फुसला कर स्वर्ग में ले गए। वहाँ स्वर्ग की छटा देखते ही बुद्छूदेव जी मस्त हो गए और बोले—"अब मैं दुनिया में नहीं जाना चाहता।" ब्रह्मा जी तो यही चाहते थे। उन्हें स्वर्ग में रख लिया।
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